मशहूर फिल्म कलाकार आशुतोष राणा की यह पोस्ट किसी ग्रुप से होती हुई मेरे पास तक पहुंची हे ,Biography of Ashutosh Rana 2024 आशुतोष राणा बायोग्राफी 2024…
अपने बच्चों की खातिर समय निकाल कर जरूर पढियेगा….
आज मेरे पूज्य पिताजी का जन्मदिन है सो उनको स्मरण करते हुए एक घटना साँझा कर रहा हूँ।
बात सत्तर के दशक की है जब हमारे पूज्य पिताजी ने हमारे बड़े भाई मदनमोहन जो राबर्ट्सन कॉलेज जबलपुर से MSC कर रहे थे की सलाह पर हम ३ भाइयों को बेहतर शिक्षा के लिए गाडरवारा के कस्बाई विद्यालय से उठाकर जबलपुर शहर के क्राइस्टचर्च स्कूल में दाख़िला करा दिया। मध्य प्रदेश के महाकौशल अंचल में क्राइस्टचर्च उस समय अंग्रेज़ी माध्यम के विद्यालयों में अपने शीर्ष पर था।
पूज्य बाबूजी व माँ हम तीनों भाइयों ( नंदकुमार, जयंत, व मैं आशुतोष ) का क्राइस्टचर्च में दाख़िला करा हमें हॉस्टल में छोड़ के अगले रविवार को पुनः मिलने का आश्वासन दे के वापस चले गए।
मुझे नहीं पता था की जो इतवार आने वाला है वह मेरे जीवन में सदा के लिए चिन्हित होने वाला है, इतवार का मतलब छुट्टी होता है लेकिन सत्तर के दशक का वह इतवार मेरे जीवन की छुट्टी नहीं “घुट्टी” बन गया।
इतवार की सुबह से ही मैं आह्लादित था, ये मेरे जीवन के पहले सात दिन थे जब मैं बिना माँ बाबूजी के अपने घर से बाहर रहा था। मन मिश्रित भावों से भरा हुआ था, हृदय के किसी कोने में माँ,बाबूजी को इम्प्रेस करने का भाव बलवती हो रहा था , यही वो दिन था जब मुझे प्रेम और प्रभाव के बीच का अंतर समझ आया। बच्चे अपने माता पिता से सिर्फ़ प्रेम ही पाना नहीं चाहते वे उन्हें प्रभावित भी करना चाहते हैं। दोपहर ३.३० बजे हम हॉस्टल के विज़िटिंग रूम में आ गए•• ग्रीन ब्लेजर, वाइट पैंट, वाइट शर्ट, ग्रीन एंड वाइट स्ट्राइब वाली टाई और बाटा के ब्लैक नॉटी बॉय शूज़.. ये हमारी स्कूल यूनीफ़ॉर्म थी। हमने विज़िटिंग रूम की खिड़की से स्कूल के कैम्पस में मेन गेट से हमारी मिलेट्री ग्रीन कलर की ओपन फ़ोर्ड जीप को अंदर आते हुए देखा, जिसे मेरे बड़े भाई मोहन जिन्हें पूरा घर भाईजी कहता था ड्राइव कर रहे थे,और माँ बाबूजी बैठे हुए थे। Biography of Ashutosh Rana 2024 आशुतोष राणा बायोग्राफी 2024…
मैं बेहद उत्साहित था मुझे अपने पर पूर्ण विश्वास था की आज इन दोनों को इम्प्रेस कर ही लूँगा। मैंने पुष्टि करने के लिए जयंत भैया जो मुझसे ६ वर्ष बड़े हैं उनसे पूछा मैं कैसा लग रहा हूँ ? वे मुझसे अशर्त प्रेम करते थे मुझे लेके प्रोटेक्टिव भी थे बोले शानदार लग रहे हो नंद भैया ने उनकी बात का अनुमोदन कर मेरे हौसले को और बढ़ा दिया।
जीप रुकी..
उलटे पल्ले की गोल्डन ऑरेंज साड़ी में माँ और झक्क सफ़ेद धोती कुर्ता गांधी टोपी और काली जवाहर बंड़ी में बाबूजी उससे उतरे, हम दौड़ कर उनसे नहीं मिल सकते थे ये स्कूल के नियमों के ख़िलाफ़ था, सो मीटिंग हॉल में जैसे सैनिक विश्राम की मुद्रा में अलर्ट खड़ा रहता है एक लाइन में तीनों भाई खड़े माँ बाबूजी का अपने पास पहुँचने का इंतज़ार करने लगे, जैसे ही वे क़रीब आए, हम तीनों भाइयों ने सम्मिलित स्वर में अपनी जगह पर खड़े खड़े Good evening Mummy. Good evening Babuji. कहा। Biography of Ashutosh Rana 2024 आशुतोष राणा बायोग्राफी 2024…
मैंने देखा good evening सुनके बाबूजी हल्का सा चौंके फिर तुरंत ही उनके चहरे पे हल्की स्मित आई जिसमें बेहद लाड़ था मैं समझ गया की ये प्रभावित हो चुके हैं । मैं जो माँ से लिपटा ही रहता था माँ के क़रीब नहीं जा रहा था ताकि उन्हें पता चले की मैं इंडिपेंडेंट हो गया हूँ .. माँ ने अपनी स्नेहसिक्त मुस्कान से मुझे छुआ मैं माँ से लिपटना चाहता था किंतु जगह पर खड़े खड़े मुस्कुराकर अपने आत्मनिर्भर होने का उन्हें सबूत दिया। माँ ने बाबूजी को देखा और मुस्कुरा दीं, मैं समझ गया की ये प्रभावित हो गईं हैं। माँ, बाबूजी, भाईजी और हम तीन भाई हॉल के एक कोने में बैठ बातें करने लगे हमसे पूरे हफ़्ते का विवरण माँगा गया, और ६.३० बजे के लगभग बाबूजी ने हमसे कहा की अपना सामान पैक करो तुम लोगों को गाडरवारा वापस चलना है वहीं आगे की पढ़ाई होगी•• हमने अचकचा के माँ की तरफ़ देखा माँ बाबूजी के समर्थन में दिखाई दीं। हमारे घर में प्रश्न पूछने की आज़ादी थी घर के नियम के मुताबिक़ छोटों को पहले अपनी बात रखने का अधिकार था, सो नियमानुसार पहला सवाल मैंने दागा और बाबूजी से गाडरवारा वापस ले जाने का कारण पूछा ? उन्होंने कहा रानाजी मैं तुम्हें मात्र अच्छा विद्यार्थी नहीं एक अच्छा व्यक्ति बनाना चाहता हूँ। तुम लोगों को यहाँ नया सीखने भेजा था पुराना भूलने नहीं। कोई नया यदि पुराने को भुला दे तो उस नए की शुभता संदेह के दायरे में आ जाती है, हमारे घर में हर छोटा अपने से बड़े परिजन, परिचित,अपरिचित जो भी उसके सम्पर्क में आता है उसके चरण स्पर्श कर अपना सम्मान निवेदित करता है लेकिन देखा की इस नए वातावरण ने मात्र सात दिनों में ही मेरे बच्चों को परिचित छोड़ो अपने माता पिता से ही चरण स्पर्श की जगह Good evening कहना सिखा दिया। मैं नहीं कहता की इस अभिवादन में सम्मान नहीं है, किंतु चरण स्पर्श करने में सम्मान होता है यह मैं विश्वास से कह सकता हूँ। विद्या व्यक्ति को संवेदनशील बनाने के लिए होती है संवेदनहीन बनाने के लिए नहीं होती। मैंने देखा तुम अपनी माँ से लिपटना चाहते थे लेकिन तुम दूर ही खड़े रहे, विद्या दूर खड़े व्यक्ति के पास जाने का हुनर देती है नाकि अपने से जुड़े हुए से दूर करने का काम करती है। आज मुझे विद्यालय और स्कूल का अंतर समझ आया, व्यक्ति को जो शिक्षा दे वह विद्यालय जो उसे सिर्फ़ साक्षर बनाए वह स्कूल, मैं नहीं चाहता की मेरे बच्चे सिर्फ़ साक्षर हो के डिग्रीयों के बोझ से दब जाएँ मैं अपने बच्चों को शिक्षित कर दर्द को समझने उसके बोझ को हल्का करने की महारथ देना चाहता हूँ। मैंने तुम्हें अंग्रेज़ी भाषा सीखने के लिए भेजा था आत्मीय भाव भूलने के लिए नहीं। संवेदनहीन साक्षर होने से कहीं अच्छा संवेदनशील निरक्षर होना है। इसलिए बिस्तर बाँधो और घर चलो। हम तीनों भाई तुरंत माँ बाबूजी के चरणों में गिर गए उन्होंने हमें उठा कर गले से लगा लिया..Biography of Ashutosh Rana 2024 आशुतोष राणा बायोग्राफी 2024…
व शुभआशीर्वाद दिया कि किसी और के जैसे नहीं स्वयं के जैसे बनो.. पूज्य बाबूजी जब भी कभी थकता हूँ या हार की कगार पर खड़ा होता हूँ तो आपका यह आशीर्वाद “किसी और के जैसे नहीं स्वयं के जैसे बनो” संजीवनी बन नव ऊर्जा का संचार कर हृदय को उत्साह उल्लास से भर देता है । आपको शत् शत् प्रणाम
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Please take time out and read it for the sake of your children…
Today is my respected father’s birthday, so remembering him I am sharing an incident.
It was in the seventies when our respected father, on the advice of our elder brother Madan Mohan who was doing MSC from Robertson College, Jabalpur, took us 3 brothers from the town school of Gadarwara for better education and enrolled them in Christchurch School in Jabalpur city. . Christchurch in Mahakaushal region of Madhya Pradesh was at the top among English medium schools at that time.
Respected Babuji and mother got all three of us (Nandkumar, Jayant, and I Ashutosh) admitted to Christchurch, left us in the hostel and went back with the assurance of meeting them again next Sunday.Biography of Ashutosh Rana 2024 आशुतोष राणा बायोग्राफी 2024…
I did not know that the coming Sunday was going to be marked in my life forever, Sunday means holiday but that Sunday of seventies became “Ghutti” not a holiday of my life.
I was happy since Sunday morning, these were the first seven days of my life when I was out of my house without my mother and father. The mind was full of mixed emotions, in some corner of the heart the feeling of impressing mother and father was getting stronger, this was the day when I understood the difference between love and influence. Children don’t just want to be loved by their parents, they also want to impress them. At 3.30 pm we came to the visiting room of the hostel. Green blazer, white pant, white shirt, green and white striped tie and Bata’s black Naughty Boy shoes.. this was our school uniform. From the window of the visiting room, we saw our military green colored open Ford jeep coming in from the main gate of the school campus, which was being driven by my elder brother Mohan, whom the whole family called Bhaiyaji, and Maa Babuji was sitting.
I was very excited, I had full confidence in myself that I would be able to impress both of them today. To confirm, I asked Jayant Bhaiya, who is 6 years older than me, how am I feeling? He loved me unconditionally and was also protective of me. He said, “You look wonderful.” Nand Bhaiya approved his words and further boosted my morale.
The jeep stopped..
Mother in golden orange saree with reverse pleats and Babuji in white dhoti kurta, Gandhi cap and black Jawahar Bandi came down from her. We could not run and meet them as it was against the school rules, so we were in the meeting hall like soldiers in resting posture. All the three brothers stood in a line waiting for Maa Babuji to reach them. As soon as he came closer, we all three brothers stood at our places in unison and said Good evening Mummy. Good evening Babuji. Said.
I saw that Babuji got a little startled after hearing ‘good evening’ and then immediately a light smile appeared on his face which was full of affection and I understood that he was impressed. I, who was always clinging to my mother, was not going close to her so that she could know that I had become independent.. Mother touched me with her affectionate smile. I wanted to hug her, but I stood still and smiled, showing my independence. Gave them proof of. Mother looked at Babuji and smiled, I understood that she was impressed. Mother, Babuji, Bhaiji and we three brothers sat in a corner of the hall and started talking. We were asked about the details of the whole week, and around 6.30 Babuji told us to pack our things and we all have to go back to Gadarwara there. There will be further studies•• We looked towards mother with surprise. Mother appeared in support of Babuji. There was freedom to ask questions in our house. According to the rules of the house, the younger ones had the right to express their views first, so as per the rules, I asked the first question and asked Babuji the reason for taking him back to Gadarwara? He said, Ranaji, I want to make you a good person and not just a good student. You people were sent here to learn the new, not to forget the old. If a new person forgets the old one, then the auspiciousness of that new person comes under the ambit of doubt. In our house, every younger relative, acquaintance or stranger, touches the feet of whoever comes in contact with him and offers his respect, but I saw that in just seven days this new environment taught my children to say good evening instead of touching the feet of their parents. I do not say that there is no respect in this greeting, but I can say with confidence that there is respect in touching the feet. Education is meant to make a person sensitive, not to make him insensitive. I saw that you wanted to hug your mother but you remained standing far away, education gives the ability to go near the person standing far away and not to distance oneself from the person who is close to you. Today I understood the difference between school and school, the school which gives education to a person and the school which makes him only literate is the school, I do not want my children to be burdened with degrees just to be literate, I want to educate my children so that they can understand the pain. I want to give him the ability to lighten his burden. I sent you to learn the English language, not to forget the sentiments. It is better to be sensitively illiterate than to be insensitively literate. So pack your bed and go home. We three brothers immediately fell at the feet of mother and father, she picked us up and hugged us. And gave good blessings that be like yourself and not like anyone else.. Revered Babuji, whenever I feel tired or stand on the verge of defeat, this blessing of yours “Be like yourself and not like anyone else” becomes the lifesaver of new energy. By communicating, it fills the heart with enthusiasm and joy. congratulations to you…